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Friday, February 17, 2023

मचा ये कैसा हाहाकार है

 Poetry; Hindi; Santosh Kumar Kannaujia; 

मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है!

चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।

हुए लहूलुहान दो मुल्क और खिंच गई नफरत की अमिट लकीरें। 

मानव हुआ शत्रु एक-दूजे का, मानवता हुई शर्मसार है

जाने ये विभिषिका, ये भयावहता किसकी देन है,

जिसमें जल रहा दिन-रात रुस और यूक्रेन है । 

मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है ! चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है। आसमान से गिरते दहकते गोले घायल होती धरती,

रोते-बिलखते बेसहारा माता - पिता, अनाथ बच्चे और बेवा हुई पत्नी।

किसी भी युद्ध, महायुद्ध और जंग का होता नहीं कोई जाति-धर्म, कहाँ जान पाया है मानव अभी तक इन महायुद्धों का मर्म।

मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है !

चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।

बस मानवता होती शर्मसार, यही युद्ध का सार है आओ मिलकर लें शपथ न हो युद्धों का आगम, न रोये इंसान कोई न हो इंसानियत का मातम ।

मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है !

चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।



Author: Santosh Kumar Kannaujia