Poetry; Hindi; Santosh Kumar Kannaujia;
मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है!
चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।
हुए लहूलुहान दो मुल्क और खिंच गई नफरत की अमिट लकीरें।
मानव हुआ शत्रु एक-दूजे का, मानवता हुई शर्मसार है
जाने ये विभिषिका, ये भयावहता किसकी देन है,
जिसमें जल रहा दिन-रात रुस और यूक्रेन है ।
मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है ! चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है। आसमान से गिरते दहकते गोले घायल होती धरती,
रोते-बिलखते बेसहारा माता - पिता, अनाथ बच्चे और बेवा हुई पत्नी।
किसी भी युद्ध, महायुद्ध और जंग का होता नहीं कोई जाति-धर्म, कहाँ जान पाया है मानव अभी तक इन महायुद्धों का मर्म।
मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है !
चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।
बस मानवता होती शर्मसार, यही युद्ध का सार है आओ मिलकर लें शपथ न हो युद्धों का आगम, न रोये इंसान कोई न हो इंसानियत का मातम ।
मचा ये कैसा दुनिया में हाहाकार है !
चहूँओर है फैली उद्वेग्ना, उद्गार है।
Author: Santosh Kumar Kannaujia


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