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Sunday, May 16, 2021

ए दिल इतना सन्नाटा क्यूं?"

~तापस सरकार

आज शाम में बात हुआ शहर के एक दोस्त से,

उन्होंने पूछा, "कैसे हों यार?" 

मैने कहा, "ठीक हूं भाई, बताओ आपका हालत क्या?" 

उन्होंने बताया, "ठीक हूं, बस थोड़ा फीवर है कुछ दिन से"

मैने कहा, "मुझे भी थोड़ा कोल्ड लगा भाई कल या परसों से।" 


ऐसी बात चलती रही,   

और दूसरे दिन की तरह,

एक बार में तो और एक बार ओ,

पूछते रहा ओ प्रश्न, 

देते रहा में उत्तर…


एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…

समय का कुछ याद नहीं था,

बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…


मैने हासा, उन्होंने भी हसा, 

मैने रोया, उन्होंने भी रोया,

मैने शुरुवात किया, उन्होंने खत्म किया,

मै रुक गया, उन्होंने फिर से शुरुवात किया,


एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…

समय का कुछ याद नहीं था,

बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…

सब कुछ पहले जैसा चल रहा था, 

शायद ओ खुश था, में भी, 

क्यूंकि पहले से कुछ चेंज नहीं था…


अचानक!

दोनों साइड से हम चुप गए,

पता नहीं कौन किसका वेट करते रहे,


एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…

समय का कुछ याद नहीं था,

बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…


हम वेट करते रहे...


फिर, अचानक,

"आज शाम बहुत शान्त है" उन्होंने बोला दर्द से, 

मैने पूछा, "क्या हुआ यार?"

"पता नहीं कल क्या होगा" उन्होंने कहा गम्भीर से, 

मैने बोला, "रुको यार ए शान्त एक मतलबी है, 

सोचो मत कल केबल कल है,

आज ए दिन सुन्दर है, कल भी रहेंगे, 

क्यूंकि कल का कल भी तो कल का आज होना है,

और हम स्वास लेते है, लेते रेहंगे"


ओ फिर से चुप गए,

अब कुछ महसूस हुआ,

हम क्या बदल गए!

हम क्या………..?


"चलो ना भाई" मैने बोला फिर से…

"कुछ बाते पूछते है 

कुछ रीजन से, कुछ अलग से…

चलो ना यार एक साथ ढूंडते है...

ए गांव कितना सुनसान है आज,

ए दर्द इतना नाजुक क्यूं?

ए शहर कैसा खामोश है आज,

ए दिल इतना सन्नाटा क्यूं?"


एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…


हम फोन नहीं रख पाए, 

कोशिश भी नहीं किए,

बस बार बार ढूंडते रहे...

"ए गांव कितना सुनसान है आज,

ए दर्द इतना नाजुक क्यूं?

ए शहर कैसा खामोश है आज,

ए दिल इतना सन्नाटा क्यूं?"


एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…

……….…………………

………………………….

………………………….

………………………….।।


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