~Tapas Sarkar
Die not to be death
Before my wish dear love,
It is not fair at all to be apart
From your bosomed heart unloved;
Make me in love one more age,
Make me in living one more life,
You can go off my visions
But never make a rose un-pink;
This is an artists' gallery: "কবির কলম" (Beauty of art is the supreme/শিল্প-সৌন্দর্য্যের রূপ শ্রেষ্ঠ) (Multilingual)
~Tapas Sarkar
Die not to be death
Before my wish dear love,
It is not fair at all to be apart
From your bosomed heart unloved;
Make me in love one more age,
Make me in living one more life,
You can go off my visions
But never make a rose un-pink;
~তাপস সরকার
কেরম যেন মনে হইল্ আইজকা বিকাল বেলা
হঠাৎ ধরফর কুরি উটিল বুকের ভিতর টঅ
বইখান থুই চিয়ার থেকে উঠি পুরিনু,
যদিঅ ইটঅ প্রথমবার নাহায়,
বুঝা পানু মন টঅ আইজকা এঙ্গনা বাইরত যাবা চায়,
বাইরকার বিকালের ডুবানুয়া সুজ্জ দিখিবা চায়,
কিন্তু বাইরত জাইলে জাম কুন্না?
বাইরত জাইলে মোর ভিতরত থাকা আগের দিনের
আস্তা, পাখি, গাছের পাত-লা আর জনাকি-লা পাম কুন্না?
ভিতরত তহ সবাই আগের মতনে ছে, আর বাইরত!
যদি আসার পথে আইজকা সাঞ্জেবেলা হয় টুপকুরি?
যাইহোক, মুই বাইরত ভেরানু
সঙ্গে এঙ্গনা দুঙ্গনা আশা নি হনে,
ভ্যাপসা গরমত দিখিনু সুজ্জ টঅ ডুবিল বুঝি,
আন্ধারত দিখিনু দু-একখান সাদা মেঘ আর নড়ানুয়া শুকান পাত-লা,
বড় গাছের বড় আন্ধার ছিয়ালা আইজকা আর নাই,
নাই পাখিলার চিৎকার চেঁচামিচি
আর নাই ভাসা থেকে পাখির ছুয়ালার সাঞ্জেবেলার ডাক,
এঙ্গনা সময় থাকিনু এরমে চুপ কুরি, বুঝিনু
সব কিছু পাই হনেঅ আইজকা যেন কিছুই পানুনি;
সিমেন্টের আস্তা টঅ ছাড়ি খলতার রাস্তা টঅ ধুরিনু,
নরম কাদুলা চুটিলার আঘাতে ঠ্যাঙ্গত নাগিল বার বার
কিন্তু ঠ্যাঙ্গত নাগা কাদুলা শুকাই গেল, মাটির গন্ধ পানুনি,
শুনিনু ঝিঁঝিঁ পকালাও ডাকিল,
কিন্তু বাইরকার আন্ধাধুন কান্তালিতে বুঝা পানুনি,
আটাতে জঙ্গলত দু-চাইরটা শিয়ালঅ ডাকিল
অমার ডাকে আর বাকিলার ডাক শুনা পানুনি,
হটাৎ, বাড়ির ভিতরতিনা থেকে একটঅ বিড়ালের ছুয়া মেও কুরি উঠিল,
কেরম যেন খানিক খান আলাদা মতন খালি খালি নাগিল,
মনে হইল মোর আর বিশিখন বাইরত থাকা যাবা নাহা;
বাড়ির চালটাত দিখিনু বিড়ালের ছুয়াংনা মায়ের পিছনে হাটি গেল,
পাশঅতে ভাঙ্গা দুয়ালটার উপর টিকটিকি টঅ টিক্ টিক্ কুরি উঠিল,
সুধু মুই চাইনু
মোর ভিতরের জগতৎ অমরা যেন আগের মতনে থাকোক,
কষ্ট হইলেঅ বাইরকার বিকাল বেলাত মুই আসিম,
কাদুর গন্ধ আস্তা, পাখি, শুকান পাত-লা আর জনাকি-লা আবার দিখিম,
একলায় বুসি থাকা শিয়াল আর ঝিঁঝিঁ পকালার ডাক আবার শুনিম,
কষ্ট হইলেঅ মুই আবার ভেরাম বাইরকার সাঞ্জেবেলাত।
~তাপস সরকার
যদি আমি কথা রাখতে না পারি, তুমি ক্লান্ত হয়োনা,
তুমি ফিরে এসো তোমার ইচ্ছে হলে, তোমার ভালোবাসায়,
তবে এবার,
ঝরে পড়ার আগে বন্য ফুলের মত হাসতে শেখো,
ভেঙে পড়ার আগে আর্ত কোকিলের মতো গাইতে শেখো,
পরিবর্তনের আগে মুক্ত মেঘের মত অনেক শিখরে ভাসতে শেখো,
ঘুমিয়ে পড়ার আগে ওই সূর্যের মতো কিছুটা সময় আলোকিত থেকো,
ফিরতে আমার দেরি হলে তুমি আবার ফিরে এসো,
ফিরতে আমার দেরি হলে তুমি এবার আমার অপেক্ষা করোনা।।
Who are you waiting for?
What is a piece of peace?
Are you waiting for someone!
Are you waiting for something
To make you happier and the happiest!
Ah, it's gloomy,
It's overwhelming indeed
To make you reach to your dream;
It's better you wake up now and stand,
You stand and make your right foot a step,
And then the next, and then the next;
Worry not of the path,
It's clear and a glorious end ahead;
Don't you wait for someone from the heaven
To attain some amount of peace,
No, don't you wait for something from the Utopia
To conquer some bucket of pleasure,
Because, not all dreams are true,
No, neither...
Happiness comes not,
Happiness needs to be felt.
~Tapas Sarkar
Once, I thought
That memory is nothing, but the corpse
Of the previous imaginations
Which has no real pulse-beat
Yet too much connected
To this day, yesterday and tomorrow,
I was believed
That memories live somewhere, in some ways,
Just I was uncertain;
Then, I grew up, I see some imaginations
Akin to memories, but already dead!
I see memories becoming imaginations,
Yet they neither survive, nor exist…
I kept pretending in preserving them day and night,
Though I knew
That I might be forgotten, I might be forlorn,
But, I kept remembering my memories,
I kept thinking
Of my imaginations,
Just I had some unknown questions;
Now, at this very moment
Of hope, love and life,
I have the same questions
About the same memories and imaginations,
Still, I do make remembrance
In asking questions...
Did we die?
Where there was no memories,
Do we exist?
Where there is no imaginations,
What if the remembrance was just a habit,
And that human is unchanged even now!
~Tapas Sarkar
For years after years you are silent
In that tranquil place,
I wonder how peacefully you are sitting
Under that lonely tree!
All those hopeful creatures
Who knew about you climbed the mountain on the other day,
Only those who had little homes and little taste to live
Are late to take their decisions’ must,
They are thirst to go ever
To the space you are dwelling in,
Rather, they are dying…
But the fear to climb to the top of the hill
And the fear of short time they are bound in
Lead them to try the other ways to reach,
In this journey some glorify knowledge, some claim victory
Until they find hunger in stomach and feel death,
Their tired souls think “there will be other day to talk to Him”,
They fail, they try, they hope…
They are incompletely done,
They fear death…
Now it is your time Buddha, you speak.
~তাপস সরকার
নির্জন মনের নির্জন প্রেমে ও আজ মত্ত,
ওর শরীরের আস্তিন দুটো কিছুটা লজ্জাহীন,
তবে হাওয়ার আমেজে গানের অ্যালবামে দু একবার ঠিক নাড়া দেয়,
ও আজ প্রেমিক…
ও প্রেমিক হলেও, না প্রেমিকার নয়, নয় নিঃসঙ্গতার,
ওর শরীর নির্জন ত্যাগে আজ বিস্তার,
ও আজ বিস্তার সুখ, বৈভবের ওই পারে,
সংগ্রামে হেরে যাওয়ার ভয় অপেক্ষা, উপেক্ষা সময়ের পরিবর্তন,
ও আজ পরিবর্তন, পরিবর্তন আজ ওর হাতের তালুতে,
তবুও, ওর মন, ওর শরীর আজ লজ্জিত এক অজানা অসুখের মর্মে;
~তাপস সরকার
পুছিলে মোর নাম, তমরা ভুরু কুচকাবানান,
জানিলে মোর নাম, তমরা বেযায় ঘামিবানান;
মোর নামে যদি কারঅ না যায় আসে,
মোর তাতে খামতি নাই;
মোর নামে যদি মুই সাড়া দুং,
তাতেই মুই মোর পরিচয় খুঁজি পাউং।
মোর কামে তমরা হাসিবানান,
জানিলে মোর কাম, তমরা বেজায় কাপিবানান;
মোর কামে মুই দারুন চাঙ্গা,
মোর গুরুত্ব মুই এরমে খুঁজি পাউং;
মোর গুষ্টির চিরা গামছাত,
মুই বাঁচিবার সুক খুঁজি পাউং।
মোর ভাষা শুনি তমরা মুক ট্যারা কুরিবানান,
জানিলে মোর কাথা, তমরা বেজায় হাম্বরগীরি কুড়িবানান;
মোর ভাষাত মুই দারুন খাঁটি,
মোর ভাষাতে কহিলে কাথা পরিচয় করাম মাটি মাটি;
তমার মুক ট্যারাতে মোর ইত্তুংনাও আপত্তি নাই,
মানুষ হবার গন্ধ মুই বিস্তর জানুং;
মোর পরিচয় মুই মান হুসের মানুষ,
বেহুদা তমার ঢং।
Beauty brings action to the eyes,
Eyes inculcate thoughts in the mind,
Mind reflects senses to the heart,
Heart speaks truth to the words,
And thus, we stay beautiful
In the eyes, mind, heart, and words;
~तापस सरकार;
हर प्यार रिश्ता नहीं होता है जनाब,
लेकिन हर रिश्ता प्यार जरूर होता है,
क्यूंकि, प्यार इतना आसान नहीं है
जो हर रोज कोल या टेक्स्ट करने से बन जाते हैं,
प्यार जिंदा रहता है प्यार कि सोच से,
प्यार प्यार बन जाते है दूसरो की ट्रस्ट से,
दूसरो की साथ समझने से,
दूसरो और खुदका सेल्फ रिस्पेक्ट से,
दूसरो के लिए रुकने से;
ऐसे तो प्यार में हर कोई गिरता है, रोता है, फिसल जाता है,
लेकिन, रिश्तों की कदर वो जानते है जो गिरता जरूर है, रोता भी है,
लेकिन फिसलता नहीं, वो रुक जाते है।।
~তাপস সরকার
ক্ষমতা আর ঘৃনা এই শব্দদুটো এক্কেবারে ঘনিষ্ট, যাকে বলে একটিকে বাদ দিয়ে অপটিকে দেখা কঠিন। একদিকে আমরা এই দুই মানবিক প্রবৃত্তির দ্বারা গুরুতর ভাবে পরিচালিত, কখনো প্রতারিত, কখনো উপেক্ষিত, কখনো বিনাশ। তবুও আমরা ক্ষমতার অভিলাষী, উচ্চাকাঙ্খী, ও ঘৃণার দাস। আমরা বেশ বুঝি ভালো মন্দ, সঠিক ভুল। কিন্তু সেখানে একটা কিন্তু থেকেই যায়, যে কিন্তু তথাকথিত যুক্তি বা জ্ঞান বলে সমাজ স্বীকৃতি দেয়, মানুষ নয়। আবার আমরা সংশয়ী হই, আমরা নিজের নিজের ভাগ দেখি, দেখি নিজের তৃপ্তি, নিজের উন্নয়ন দেখি, সমাজের নয়, নয় পরিব্যাপ্তীর। অন্যদিকে, কেউ যদি প্রচার করে মানুষকে ভালোবাসতে ক্ষমতা কিংবা যোগ্যতা লাগেনা, লাগে ভালোবাসা, একটুখানি হাসি, সুষ্ঠ শিক্ষিত সমাজ তাতে অট্টহাসিতে উগড়ে দেয় বা আবারও দেবে। আবার যদি কেউ প্রমাণ করার চেষ্টা করে, হাসি দিয়ে পৃথিবী জয় করা যায়, যুদ্ধে দিয়ে নয়, এতেও আজকের সমাজ, আজকের মস্তিষ্ক বলবে "তুমি উন্মাদ, তুমি পাগল"। আসলে আমরা মানুষ হিসেবে সব কিছু বুঝি, কেবল প্রতিবাদ করছি না কোনো কিছুর, যতক্ষণ না নিজের হাতে একটু আগুনের ছেঁকা লাগছে। কিন্তু এই আগুন ধীরে ধীরে ভেতরের দিকেই দারুণভাবে উত্তপ্ত হয়ে উঠছে, কোথাও কোথাও চরমে, যে কোনো সময় ঘটবে বিস্ফোরণ। তাই, ভাবুন একটু সময় থাকতে, আমরা কোন পথে চালিত হচ্ছি, পরিণতি এখন না হলেও, হবেনা তা নয়। বিস্ফোরণের আগে সতর্ক ভালো, সতর্কতার আগে সচেতন ভালো, সচেতনতার আগে ভালো সংশোধন। ক্ষমতা কিংবা ঘৃণা নয়, ভালোবাসা আর যত্নে আকৃষ্ট হোন।
~तापस सरकार
आज शाम में बात हुआ शहर के एक दोस्त से,
उन्होंने पूछा, "कैसे हों यार?"
मैने कहा, "ठीक हूं भाई, बताओ आपका हालत क्या?"
उन्होंने बताया, "ठीक हूं, बस थोड़ा फीवर है कुछ दिन से"
मैने कहा, "मुझे भी थोड़ा कोल्ड लगा भाई कल या परसों से।"
ऐसी बात चलती रही,
और दूसरे दिन की तरह,
एक बार में तो और एक बार ओ,
पूछते रहा ओ प्रश्न,
देते रहा में उत्तर…
एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…
समय का कुछ याद नहीं था,
बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…
मैने हासा, उन्होंने भी हसा,
मैने रोया, उन्होंने भी रोया,
मैने शुरुवात किया, उन्होंने खत्म किया,
मै रुक गया, उन्होंने फिर से शुरुवात किया,
एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…
समय का कुछ याद नहीं था,
बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…
सब कुछ पहले जैसा चल रहा था,
शायद ओ खुश था, में भी,
क्यूंकि पहले से कुछ चेंज नहीं था…
अचानक!
दोनों साइड से हम चुप गए,
पता नहीं कौन किसका वेट करते रहे,
एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…
समय का कुछ याद नहीं था,
बस ठीक है सब कुछ लग रहा था…
हम वेट करते रहे...
फिर, अचानक,
"आज शाम बहुत शान्त है" उन्होंने बोला दर्द से,
मैने पूछा, "क्या हुआ यार?"
"पता नहीं कल क्या होगा" उन्होंने कहा गम्भीर से,
मैने बोला, "रुको यार ए शान्त एक मतलबी है,
सोचो मत कल केबल कल है,
आज ए दिन सुन्दर है, कल भी रहेंगे,
क्यूंकि कल का कल भी तो कल का आज होना है,
और हम स्वास लेते है, लेते रेहंगे"
ओ फिर से चुप गए,
अब कुछ महसूस हुआ,
हम क्या बदल गए!
हम क्या………..?
"चलो ना भाई" मैने बोला फिर से…
"कुछ बाते पूछते है
कुछ रीजन से, कुछ अलग से…
चलो ना यार एक साथ ढूंडते है...
ए गांव कितना सुनसान है आज,
ए दर्द इतना नाजुक क्यूं?
ए शहर कैसा खामोश है आज,
ए दिल इतना सन्नाटा क्यूं?"
एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…
हम फोन नहीं रख पाए,
कोशिश भी नहीं किए,
बस बार बार ढूंडते रहे...
"ए गांव कितना सुनसान है आज,
ए दर्द इतना नाजुक क्यूं?
ए शहर कैसा खामोश है आज,
ए दिल इतना सन्नाटा क्यूं?"
एक मिनिट, दो मिनिट, तीन, चार, पाच…
……….…………………
………………………….
………………………….
………………………….।।
~totons@
...in this decorative theatre of space, Everybody has a story to tell,
Everybody has a character to act; A self is indeed a truth,
Or may be not; It's not a false proportion.
The other selves keep their own stories, their own characters too, but differently,
Here, we fall apart.
Un-mistakenly, Change becomes homogenous unknowingly,
Here, a clock becomes old keeping the Pendulum unchanged dangling…
~Tapas Sarkar
After a dreadful war
Of taking or to be gotten,
Of giving or to be given,
If you are still failure and full of misery,
You stay awake in a midnight,
Hear yelling foxes
And the barking dogs,
If you feel disturbed,
It is your fault,
Your own lowliness;
You stay awake in late night,
Hear a lonely owl,
And the crickets,
If they remind you sadness,
It is your fault,
It is your own hollowness,
You stay awake just before the dawn,
Hear flapping unknown birds,
And the falling dew drops,
If still you are hopeless,
It is your fault,
It is your own worth of KARMA.
~তাপস সরকার
গুনছে তাদের শ্বাস-প্রশ্বাস কে?
কে মানছে তাদের আবদার?
ধুঁকছে মানুষ, ধুঁকছে ওরা
এ কাল ভীষণ উপসংহার,
শক্ত হলেই, ওষুধ খেলেই
ফিরতে হবে বাড়ি,
অনেক আছে বাড়ি ফিরছে,
যুদ্ধের কেউ সমাপ্তিতে থমকে শবের সারি,
সংসার আজ অসম্মানে
ব্যাতিরেকে সমাজ খুয়েছে তরী,
খুলছে মানুষের মুখোশ এবার,
হচ্ছে আবার মুখোশধারী।
পৃথিবী আবার শান্ত হলে
বিস্তৃত হোক বিশ্বাস,
মানুষ এবার পরিচিত হবে
বিষাক্ত ব্যাধির সংহারে।
~तापस सरकार
कौन कहते है हम मुस्कुराते नहीं!
कौन कहते है हम बस रोते है!
ऐ बात सच नहीं हम मुस्कुराते नहीं,
हम तो बस रोने में खुद को पहचान लेते है;
क्यूंकि कोई अजनबी ने बोला था
"अरे पगले, जिंदगी के अंत से ही इसकी शुरुवात होती है"।।
~तापस सरकार
एक सुंदर पुस्प भी आपसे शरमाएंगे;
दिलसे कहु आप मान लीजिए गा,
हम आपकी तारीफ में फस गए;
अब, आपसे हम तड़पते है,
मतलब जीनेका समझ गए;
आज, काश आप हमसे नाराज़ होते,
काश हम आपको प्यार दे पाते।।